भिलाई @ News-36. वैसे तो भगवान श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में, माता कौशल्या से लेकर देवियों की कई प्राचीन मंदिर है, जहां आदिशक्ति, विभिन्न रूपों में विराजित हैं । चाहे वह डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर विराजमान देवी बम्लेश्वरी हो, रतनपुर की देवी महामाया, चंद्रपुर की चंद्रहासिनी, दंतेवाड़ा की माता दंतेश्वरी, धमतरी की बिलईमाता, बालोद झलमला की गंगा मैय्या या फिर करहीभदर की सियादेवी। इन प्राचीन मंदिरों मं विराजित देवियों की अलग ही कहानी है। जिसे आप सभी जानते हैं। माता का प्रत्यक्ष दर्शन का लाभ भी उठा चुके होंगे। चैत्र और क्ंवार नवरात्रि में समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पढऩे के साथ टेलीविजन चैनलों में माता की महिमा के बारे में क्रमश: पढऩे, देखने, और सुनें भी होंगे, लेकिन इस चैत्र नवरात्रि में एक ऐसी देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जो प्राचीन होने के साथ स्वयं-भू है। कंकाली तालाब रायपुर स्थित देवी कंकालीन की बड़ी बहन भी है। जिसके बारे में छत्तीसगढ़ ही नहीं, अपितु अविभाजित दुर्ग जिले (दुर्ग, बालोद, बेमेतरा) के बहुत कम रहवासी जानते होंगे। यह मंदिर चमत्कारिक तो है ही, यहां आने वाले श्रद्धालुओं की झोली कभी खाली नहीं गया।
मंदिर के बारे में See MoreVedio : ……लेकिन माता हिली डुली नहीं
@ News-36. जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर है मंदिर
मॉं कंकालिन का मंदिर, बालोद जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर धमतरी रोड पर ग्राम पंचायत कनेरी में स्थित है। यह मंदिर 151 साल (स्थापना वर्ष -1869 )पुराना है। यहां मां माता कंकालीन( हिन्दू देवी कालरात्रि) विराजमान है। माता की प्रतिमा रौद्र रूप में है। धातु की प्रतिमा को देखने पर ऐसा लगता है जैसे माता दैत्य रक्तबीज का संहार कर लौट रही है। माता को शांत कराने के लिए भगवान शंकर जमीन पर लेटे हुए हैं। भगवान शंकर के छाती पर पैर रखते ही माता, वहीं पर ठहर गई होंगी। नरमुंड की माला पहनी हुई है। एक हाथ में त्रिशुल पकड़ी हुईं तो दूसरे में गंडक, तीसरे हाथ में रक्तबीज का कटा हुआ सिर और चौथे में खप्पड़ धारण की हुई हैं।
@ News-36. 1857 में गांव के बैगा को पहली बार स्वप्न में दिया था दर्शन
वर्षों से माता की सेवा कर रहे बैगा परिवार के तीसरी पीढ़ी घनश्याम उइके बताते हैं कि उनके दादा जी को माता, पहली बार 1857 में स्वप्न में दर्शन दी थी। तब वह के गांव से दूर शीतला मंदिर के पास (तालाब पार)में थी। स्वप्न में जिस जगह का दर्शन हुआ था। पूजा अर्जना कर उसी जगह खुदाई की गई। दो से ढाई फीट की गहराई माता विराजमान थी। गांव वालों ने उसे लाने के लिए अथक प्रयास किया, लेकिन माता हिली डुली नहीं। तब12 साल तक माता की उसी स्थान पर सेवा की। गांव वाले और श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर का निर्माण शुरू किया और 1869 में मंदिर बनकर तैयार हुई। पूजा अर्चना के साथ देवी काली की प्रतिमा स्थापित की गई। उसके बाद माता मंदिर में आने के लिए तैयार हुई।
@ News-36. आकाशवाणी रोड स्थित किनारे विराजित देवी कंकालीन, माता की है छोटी बहन
65 वर्षीय धनश्याम का कहना है की माता कंकालीन की तीन बहन है। बड़ी बहन खारून नदी के उदगम स्थल कंकाली गांव/ बढुम में विराजमान है। यह गांव बालोद जिले के अंतर्गत आता है। कनेरी से 20 किलोमीटर दूर है। कनेरी की देवी कंकालीन मंझली है। कंकाली तालाब रायपुर के तटबंध में विराजित देवी कंकालीन, माता की छोटी बहन है। बैगा कहना है कि चैत्र और क्ंवार नवरात्रि में तीनों बहनों के यहां निमंत्रण देने जाते हैं। वहां से भी निमंत्रण के साथ माता का श्रृंगार आता है।
@ News-36. साल में दो बार मेला लगता है
यहां चैत्र और क्ंवार नवरात्रि दोनों पर्व पर मेला लगती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता का दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं, लेकिन इस वर्ष कोविड के संक्रमण की वजह से यहां मेला नहीं लगेगी। लॉकडाउन की वजह से बाहर के श्रद्धालुओं की आवाजाही प्रतिबंधित है। इसलिए आप माता का News-36 के यू ट्यूब चैनल पर वीडियो के माध्यम से घर बैठे माता का दर्शन कर सकते हैं।