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वाकई में माता बिलाई अपने स्थान पर कर रही हैं भ्रमण, आइए जानते विंध्यवासिनी देवी के रहस्य

ताराचंद सिन्हा/ भिलाई@ News-36.माता विंध्यवासिनी (बिलाईमाता) को लेकर यह किवदंती है कि माता अपने स्थान पर भ्रमण कर रही हैं। इसी वजह से गर्भगृह के द्वार खड़े होने वाले श्रद्धालुओं को माता के स्वरूप का पूर्ण दर्शन नहीं हो पाता। माता का मुख, गर्भगृह के द्वार के सीधे न होकर, 45 अंश कोण के घुमाव पर है। यानी जब श्रद्धालु माता दर्शन के लिए गर्भगृह के सामने खड़े होता है तो माता का स्वरूप, द्वार के सीध से घुमते हुए दिखाई देता है। यह सब कैसे हुआ आइए जानते हैं देवी विंध्यवासिनी के रहस्य को…
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आचार्यश्री नारायण दुबे ने बताया कि, माता विंध्यवासिनी स्वयं-भू है। यानी माता की मूर्ति को किसी ने स्थापित नहीं किया है। माता की उत्पत्ति जमीन से हुई है। बाद में उनके स्थान को मंदिर का स्वरूप प्रदान किया गया, तब माता गर्भ में ही थी। मूर्ति पूर्ण रूप से बाहर नहीं आई थी और श्रद्धालुओं को द्वार से ही, माता के दर्शन हो जाते थे

1825 में जीर्णोद्धार
1825 में चंद्रभागा बाई पवार ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करावाया। गर्भगृह के द्वार पर दरवाजा लगाने के बाद प्राण-प्रतिष्ठा की गई तो, देवी की मूर्ति स्वयं ऊपर आ गई। परंतु देवी का चेहरा द्वार के ठीक सामने नहीं आ पाया। थोड़ा तिरछा रह गया। वर्तमान स्थिति में माता उसी स्वरूप में है।
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बिलाई माता के रूप में कैसे हुआ प्रचलित
माता की उत्पत्ति कब हुई? इसका लिखित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि देवी की उत्पत्ति 11-12वीं शताब्दी में हुई होगी। 11-12वीं शताब्दी में गोंड़वाना शासन था। उस समय धमतरी क्षेत्र में गोड़ राजा नरेश धुरवा का राज्य हुआ करता था। राजा नरेश धुरवा को ही पहली बार माता ने दर्शन दिए थे। मूर्ति की उत्पत्ति के बारे में भी यह किवंदती है कि राजा अपने सैनिकों के साथ आखेट के लिए जंगल की ओर गया था। राजदरबार से थोड़ी दूर पर सैनिकों की टुकड़ी रूक गई। सैनिकों के कई प्रयास के बावजूद घोड़ा अपने स्थान से टस से मस नहीं हुए। तब राजा अपने रथ से उतरकर आसपास देखने लगे, इस बीच उनकी नजर एक ऐसे पाषाण (पत्थर) पर पड़ी, जिसके आसपास तेज प्रकाश पुंज था। पाषाण के दोनों तरफ बिल्लियां बैठी हुईं दिखाई दे रहीं थी। जो अत्यंत ही डरावनी लग रही थीं। राजा के आदेश पर सैनिकों ने बिल्लियों को भगाया और उसके समीप गए। सैनिकों ने देवी की मूर्ति को निकालने का प्रयास किया, लेकिन मूर्ति बाहर आने की बजाय वहां से जल धारा फूट पड़ी। इसके बाद राजा वहां से लौटा आया। रात में राजा को स्वप्न में देवी ने कहा कि उन्हें वहां से निकालने का प्रयास व्यर्थ है। उसी स्थान पर उनकी पूजा अर्चना की जाए। राजा ने दूसरे दिन ही जंगल में ही पूजा अर्जना कर ध्वज के साथ देवी की स्थापना करवा दी। राजा की कहानी बिल्ली से जुड़ी होने की वजह से लोग देवी को, बिलाई माता के नाम से भी पुकारते हैं।
धमतरी के लोग देवी
इसके अलावा धमतरी रहवासी देवी को योगमाया, यशोदा की पुत्री विंध्यवासिनी और भगवान श्रीकृष्ण की बहन, नन्दजा के नाम से भी पुकारते हैं। वर्तमान में माता अपने जगह पर विराजमान हैं, लेकिन अब वहां पर जंगल नहीं है। भव्य मंदिर है। मंदिर के आसपास धमतरी शहर की बसाहट हो गई है।
पांच शक्तिपीठ में से एक है देवी विंध्यवासिनी
देवी विंध्यवासिनी न केवल धमतरी, बल्कि छत्तीसगढ़ की आराध्य देवी हैं। छत्तीसगढ़ के पांच शक्तिपीठ में से एक है। यहां चैत्र और क्वांर नवरात्र में मेला लगता है। फिलहाल कोविड की वजह से धमतरी में लॉकडाउन है। मंदिरों में श्रद्वालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। ऐसे में आप के यू ट्यूब चैनल पर वीडियो के माध्यम से माता का लाइव दर्शन कर सकते हैं।
देंखें वीडियो: छत्तीसगढ़ में कहां पर विराजमान है आदिशक्ति..

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