बिहार को टक्कर देगी अबूझमाड़ की लीची

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शासकीय स्कूल ग्राउंड में लगे लीची के पौधे
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रायपुर. लीची का नाम सुनकर अमूमन बिहार के मुजफ्फरपुर इलाके का नाम याद आता है, लेकिन अब इस कहानी में जरा टि्वस्ट आने वाला है। छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र की मीठी लीची भी मुजफ्फरपुर की लीची को टक्कर देने मार्केट में आ रही है। कभी नक्सलियों के गढ़ के रूप में पहचाने जाने वाले अबूझमाड़, लीची की खेती कर नई पहचान बनाने जा रहा है।

साल 1995 में ओरछा के शासकीय उद्यान में 100 पौधों का रोपण किया गया था, जो अब पर्याप्त फल दे रहे हैं। इस छोटी सी सफलता ने उम्मीद को रोशनी दिखाई दी है। इसे ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भेंट मुलाकात के दौरान  क्षेत्र में 200 एकड़ में लीची के पौध लगाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही जिन किसानों को मसाहती खसरा मिल गया है उन सभी को 20 से 30 पौधे देने कहा गया है। अब सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो लीची इस इलाके को नई पहचान दे सकती है।

लीची के पौधे को लंबी सर्दी और पर्याप्त बारिश की जरूरत होती है और अबूझमाड़ का क्षेत्र इस हिसाब से अनुकूल है। अबूझमाड़ की जलवायु, मिट्टी और मौसम लीची के बागानों के लिए उपयुक्त है। बूझमाड़ का क्षेत्र घनघोर जंगल है, इस वजह से यहां बारिश पर्याप्त होती है। इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वर्षा होती है। अबूझमाड़ की समुद्र तल से 16 सौ मीटर ऊंचाई होने के कारण आर्द्रता और शीतल जलवायु लीची के लिए उपयुक्त जलवायु है ।

मिठास के साथ मालामाल करेगी लीची

लीची का सीजन मुश्किल से एक महीने का होता है। 10 मई के आसपास फल लगना शुरू होते हैं, और 10 जून से पहले ही इसका सीजन खत्म हो जाता है। लेकिन एक माह से भी कम समय में प्रति हेक्टेयर 2 सौ पौधों के हिसाब से 4 से 5 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है ।

नहीं पड़ती मार्केटिंग की जरूरत

सीजन छोटा होने की वजह से लीची की बाजार में इतनी डिमांड है कि मार्केटिंग की जरूरत ही नहीं पड़ती है। व्यापारी बागानों से एडवांस में बुकिंग कर लेते हैं। ओरछा शासकीय उद्यान में लगे लीची के 100 पौधों के फल आने से पहले ही व्यापारी आकर बुकिंग कर लेते हैं ।

ऐसे बिखरती है लीची की मिठास

लीची के पौधे से आय करना बहुत ही आसान है. इसके पौधों को लगाना बहुत आसान है. यदि पर्याप्त बारिश होती है, तो सिर्फ गर्मी के सीजन में पौधे को पानी देना होता है। खाद भी बहुत कम लगती है. इसके पौधे की खास बात है कि पांच साल में ही फल देने लगता है। एक सीजन में एक पेड़ में 20 किलो लीची लगती है, जो औसतन 120 रुपये किलो बिकती है। यही पेड़ 10 साल बाद प्रति सीजन 1 क्विंटल तक फल देता है ।

मसाहती सर्वे के बाद किसानों को लीची रोपण की ट्रेनिंग

अबूझमाड़ क्षेत्र में सर्वे और मसाहती खसरा वितरण का कार्य जोर शोर से चल रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर इस क्षेत्र में 200 एकड़ में लीची के पौधों का रोपण किया जाएगा साथ ही जिन किसानों को मसाहती खसरा मिल गया है उन सभी को 20 से 30 पौधे दिए जाएंगे। उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों के खेतों में पौधों का रोपण किया जायेगा और उन्हें ट्रेनिंग भी देंगे

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