रायपुर @ news-36. लोगों के प्रति जिनकी सोच अच्छी हो और हौसले बुलंद हो। उसका साक्षात काल( मौत) तो क्या, कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। साहस की कुछ ऐसी कहानी है अबूझमाड़ (नारायणपुर) की बेटी नर्स अंशु नाग की। अंशु ने तीन बार मौत को सामने देखा, उनके सामने ही तीन बार आई ई डी बम फ टा और जवान भी शहीद हुए, लेकिन वे डरी नहीं। निडरता के साथ वे धुर नक्सल क्षेत्र में लोगों की सेवा कर रही हैं। वे बारिश में भी कीचड़ से सने रास्तों के बीच, कमर से ऊपर तक? भरे नदी-नालों को पार कर माड़ के गांवों में पहुंचकर लोगों को स्वास्थ्य सेवा दे रही हैं। कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए लोगों को वैक्सीन लगाने से लेकर जन जागरूकता अभियान चला रही हैं।
मां की सेवा से हुईं प्रेरित
नारायणपुर की अंशु नाग अबूझमाड़ इलाके में गत सात सालों से बतौर नर्स अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनकी मां भी नर्स थी और अब रिटायर हो चुकी हैं। मां को लगन से सबकी सेवा करते देख और लोगों से मिले सम्मान और प्यार को देखकर काफी प्रेरित हुई। उन्होने भी इसी पेशे को अपनाया।
बातचीत में दिक्कत न हो, इसलिए गोंडी बोली भी सीखी
यहां के स्थानीय आदिवासियों का इलाज सही तरीके से करने एवं उनसे संवाद के लिए गोंडी बोली भी सीखी। जब उनकी मां शीला, शासकीय सेवा में थी। तब नारायणपुर शहर में अधिकांश प्रसव (डिलीवरी) उन्ही के हाथों हुआ करते थे। लोगों में इतना विश्वास होता था कि अमीर-गरीब सभी परिवार प्रसव के लिए इनके पास ही आते थे। अब उनकी बेटी कुतुल, कोहकामेटा समेत दर्जनों गांव के ग्रामीणों को जागरूक करने के साथ ही कोविड वैक्सीन लगाने में महती भूमिका निभा रही हैं।
जागरूकता की कमी है
अंशु ने बताया कि पिछड़ेपन की वजह से ग्रामीणों में जागरूकता की कमी है। जिसकी वजह से अंदरूनी इलाकों में महिलाओं और बच्चों को विशेष देखरेख की आवश्यकता है। अंशु का मानना है कि जीवन में जितना हो सके अच्छा काम करना है और वे उसी सेवा भाव से जुटी रहती हैं।
कोरोना को भी हरा चुकी हैं
अंशु कोरोना को भी हरा चुकी हैं। उनका कहना है कि लोगों की सेवा करते-करते हुए पता ही नहीं चला कि कब वायरस की चपेट में आईं और जल्द स्वस्थ भी हो गईं। अशुं बताती हैं कि वायरस से जब वह संक्रमित हुई तो होम आइसोलेशन में रहकर अपनी रिटायर्ड नर्स मां की देखरेख में स्वस्थ होकर फि र से अबूझमाड़ के लोगों का दर्द साझा करने में जुट गई है।