दुर्ग @ news-36. केंद्र सरकार ´द्वारा खरीफ फसलों के लिए कल घोषित समर्थन मूल्य पर प्रतिक्रिया को लेकर छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त किया है। संगठन के राजकुमार गुप्ता का कहना है कि, खेती कार्य की लागत में 50 फीसदी लाभ देने का मोदी सरकार का दावा किसानों के साथ झांसा है सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य खेती-किसानी के लागत मूल्य में वृद्धि की भी भरपाई नहीं करती, इसके लाभकारी मूल्य होने की बात तो दूर है। इससे कृषि संकट और किसानों की बदहाली और बढ़ेगी।
छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के गुप्ता का कहना है, कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष खरीफ की फसलों के समर्थन मूल्य में मात्र 1.08 फीसद से 6.59 फीसद की वृद्धि की गई है। औसत वृद्धि 3.6 फीसद ही है, जबकि खुदरा महंगाई दर 5 फीसद से ऊपर चल रही है।
छत्तीसगढ़ में धान, गेंहू, मक्का की प्रमुख फसलें हैं। इन फ सलों के समर्थन मूल्य में भी क्रमश: केवल 3.85 फीसद और 1.08 फीसद की ही वृद्धि की गई है, जो निराशाजनक है।
ईंधन की कीमतों में वृद्धि से लागत में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी
समर्थन मूल्य में यह वृद्धि डीजल की कीमतों में हुई वृद्धि के कारण खेती-किसानी की लागत में हुई वृद्धि के अनुपात में भी नहीं है। डीजल के मूल्य में हुई वृद्धि के कारण खेती की लागत में 700- 1000 रुपये प्रति एकड़ की वृद्धि हुई है।
लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य चाहिए
किसान संगठन के नेता ने कहा है कि केंद्र द्वारा समर्थन मूल्य में यह वृद्धि ए-2+एफएल फार्मूले पर आधारित है, जबकि देश का किसान आंदोलन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने की मांग कर रहा है, उन्होंने कहा कि समर्थन मूल्य की घोषणा करना एक बात है और हर किसान को इसका पाना दूसरी बात है।
आंदोलन रहेगा जारी
देश के 94 फीसदी किसानों को इसका लाभ नहीं मिलता। इसीलिए देश का किसान समुदाय हर किसान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की गारंटी करने वाला कानून बनाने की मांग कर रहा है। इस कानून के बिना समर्थन मूल्य में की गई कोई भी वृद्धि व्यर्थ है, इन्होंने आगाह किया है कि तीन कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने का कानून बनाने तक देशव्यापी किसान आंदोलन जारी रहेगा।